Abstract
Indian Journal of Modern Research and Reviews, 2025;3(5):30-37
भारत में न्यायिक सक्रियता: सैद्धांतिक एवं संवैधानिक विश्लेषण
Author :
Abstract
भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक सक्रियता एक प्रभावशाली संवैधानिक प्रवृत्ति के रूप में उभरी है,जिसका उद्देश्य संविधान की मूल आत्मा की रक्षा और सामाजिक न्याय का विस्तार करना है। प्रस्तुत शोध आलेख न्यायिक सक्रियता की वैचारिक आधारशिला, संवैधानिक प्रावधानों तथा इससे संबंधित न्यायिक प्रवृत्तियों का विश्लेषण करता है। इस आलेख में शक्ति पृथक्करण सिद्धांत, न्यायिक पुनरावलोकन की भूमिका, जनहित याचिका जैसे उपकरणों और आधारभूत ढाँचा जैसे न्यायिक नवाचारों का विश्लेषण करते हुए यह समझने का प्रयास किया गया है कि न्यायिक सक्रियता किस सीमा तक वैध, आवश्यक और प्रभावशाली है। यह शोध आलेख विश्लेषणात्मक प्रकृति का है। प्रमुख स्रोतों में भारतीय संविधान, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णय, तथा प्रासंगिक अधिनियम शामिल हैं। सहायक स्रोतों में पुस्तकें, शोध आलेख, विधिक टीकाएं और ऑनलाइन डेटाबेस शामिल हैं।
Keywords
न्यायिक सक्रियता, संविधान, मूल अधिकार, शक्ति पृथक्करण न्यायिक पुनरावलोकन, जनहित याचिका, आधारभूत ढाँचा सिद्धांत, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व