Abstract
Indian Journal of Modern Research and Reviews, 2025;3(8):52-55
प्राचीन भारत की न्यायिक व्यवस्था की बदलती परिस्थितियां
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Abstract
प्राचीन भारत की न्यायिक व्यवस्था भारतीय समाज की मुख्य आधारशिला रही है जो कि धर्म पर आधारित थी। प्राचीन भारतीय न्यायिक व्यवस्था केवल दंड देने तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह संपूर्ण व्यवस्था धर्मनीति तथा समाजिक आचार पर स्थापित थी। प्रस्तुत शोध का मुख्य उद्देश्य ऋग्वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक की न्याय व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का अध्ययन करना है। इसके अध्ययन में ऋग्वेद धर्मसूत्र , स्मृतियाँ, महाभारत, रामायण तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र जैसे प्राथमिक ग्रंथों का आश्रय लिया गया है। इसके अतिरिक्त आधुनिक इतिहासकार जैसे
A.S Alteker, K.P जयस्वाल तथा R.C मजुमदार के विचारों को भी शोध का आधार बनाया गया है। प्राचीन भारत की न्याय व्यवस्था का अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट होती है कि प्राचीन भारत में राजा ही सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में कार्य करता था, लेकिन सभा, समिति, पंचायत तथा अन्य न्यायालय भी न्यायिक प्रक्रिया में से सक्रिय थे। संपूर्ण न्याय व्यवस्था धर्म तथा नैतिक मूल्यों पर आधारित थी जिसमें लोगों के नैतिक आचरण, सामाजिक परम्पराएँ तथा धर्म शास्त्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही महिलाओं तथा निम्न वर्णो के लोगों की न्यायिक व्यवस्था में बदलाव आता गया संपूर्ण रूप से कहा जा सकता है कि प्राचीन भारतीय न्यायिक व्यवस्था प्राचीन समाज में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखने में सहायक रही।
Keywords
प्राचीन, दंड, न्याय, प्रशासन, विधि, न्याय व्यवस्था
